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मास्टर प्लान 2041 दिशाहीन, दिल्ली के संरक्षित एवं सुरक्षित विकास के प्रति गंभीर विजन का अभाव

नवीन गौतम, नई दिल्ली। 

डीडीए द्वारा प्रस्तुत मास्टर प्लान 2041 दिल्ली के संरक्षित एवं सुरक्षित विकास के प्रति अगंभीर व दिशाहीन है।
डीडीए ने न तो पिछली नाकामियों से सबक लिया और न ही भविष्य की दृष्टि (विजन) व लक्ष्य केंद्रित योजना का ढांचा तैयार किया है, लीपीपोती कर औपचारिकता पूरी की गई है। बुनियादी ढांचा तैयार करने, सेवाओं के विस्तार व प्रबन्धन तथा विभिन्न नागरिक एजेंसियों के बीच समन्वय में मास्टर प्लान विफल रहा है। डीडीए का गठन निम्न व मध्यम वर्ग के लोगों के लिए सस्ते आवास व व्यवसायिक क्षेत्र का निर्माण एवं प्रबन्धन करना था, लेकिन उन्होंने ज्यादा से ज्यादा पैसा बटोरने के लिए नीलामी शुरु कर दी, एक सेवारत एजेंसी प्रापर्टी डीलर में बदल गई। डीडीए ने बिना पूर्व योजना के बड़े पैमाने पर औने-पौने दामों पर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया, जिनमें से अधिकांश पर डीडीए कर्मचारियों, राजनेताओं और पुलिस के बीच सांठगांठ की मदद से कब्जा कर लिया गया। डीडीए की धनोन्मुखी प्रवृत्ति और योजनागत विकास में नाकामी के कारण दिल्ली का अनियोजित विस्तार हुआ और दिल्ली स्लम में तब्दील हो गई। लगातार मास्टर प्लान अप्रासंगिक हुए हैं जिससे मास्टर प्लान बनाने के औचित्य पर प्रश्न उठ रहा है, सफेद हाथी के रुप में परिवर्तित हो चुका डीडीए दिल्लीवासियों के लिए ‘जी का जंजाल’ साबित हुआ है और इसे दिल्ली के विकास में अवरोधक मान भंग करना ही उचित है।

एमपीडी-2021 तक पिछले मास्टर प्लान के क्रियान्वयन में सफलता-असफलता की समीक्षा शामिल होती थी लेकिन इस बार यह परिलक्षित नहीं हुई है, लगता है एमपीडी-2021 पूर्णतः विफल रहा है। उन्होंने कहा कि जरुरतमंदों को आवास प्रदान करने में डीडीए न केवल नाकाम हुआ बल्कि भ्रष्टाचार में लिप्त नजर आया। एमपीडी-2041 में कहा गया कि दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा अनधिकृत कॉलोनियां, निर्माण की खराब गुणवत्ता और उच्च निर्मित घनत्व के कारण असुरक्षित हैं जबकि डीडीए द्वारा निर्मित मकानों के लिए आवेदन मांगे गए तो उनके दाम इतने अधिक थे कि निम्न व मध्यम वर्ग की पहुंच में नहीं थे और दूसरा निर्माण सामग्री इतनी घटिया थी कि 13000 मकान तो बिके ही नहीं और जो आवंटित भी हुए उन्होंने जर्जर मकानों को वापस कर दिया। अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 95 प्रतिशत लोगों ने निर्माण चूंकि खुद के रहने के लिए किए हैं लिहाजा उनकी गुणवता व ढांचा बेहतर है। अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितकरण पर अब डीडीए ने चुप्पी साध ली है, यहां के निवासियों को अब उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।

पिछले एमपीडी-2021 में ‘लैंड पूलिंग’ योजना प्रस्तुत की गई जिसे निजी क्षेत्र के भूमि संयोजन से दिल्ली के बुनियादी ढांचे के विकास में एक नया प्रतिमान बताया गया और जिसे 20 वर्ष बाद इन्हीं शब्दों में एमपीडी-2041 में पुनः दोहराया गया है। 5 सितंबर 2013 को लैंड पूलिंग नीति को अधिसूचित किया गया, 5 वर्ष बाद 11 अक्टूबर 2018 को इसके निमित्त विनियमों को अधिसूचित किया गया तथा लैंड पूलिंग के माध्यम से नए क्षेत्रों का विकास कर 17 लाख आवास तैयार किए जाने का दावा किया गया। सहयोग न मिलने के चलते भूमि प्रदाताओं के लिए आवेदन की अंतिम तिथी कई बार बढ़ाई गई, विनियमों में भी बदलाव किए गए लेकिन डीडीए की ज्यादा से ज्यादा उगाही करने की मानसिकता के चलते अपेक्षाकृत प्रतिक्रया नहीं मिली है। एमपीडी-2021 में कहा गया था कि वर्ष 2021 तक 230 लाख की अनुमानित जनसंख्या के लिए अनुमानित लगभग 24 लाख अतिरिक्त आवासीय इकाइयों की आवश्यकता होगी, जबकि एमपीडी 2041 में वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर, वर्ष 2041 तक दिल्ली के लिए 34.5 लाख आवास इकाइयों की आवश्यकता का अनुमान लगाया गया है यानी एमपीडी-2021 के 20 वर्ष इस दिशा में विफल साबित हुए हैं।

पर्यावरण की दृष्टि से आवश्यक हरित संपत्तियों के संदर्भ में डीडीए का दावा है कि दिल्ली में 18,000 से अधिक पार्क और उद्यान हैं, जो शहर के हरित भाग को बढ़ाते हैं लेकिन अधिकांश पार्कों का न तो रखरखाव हो रहा है और न ही वे हरे-भरे हैं। डीडीए ने दिल्ली में 7 जैव विविधता पार्क स्थापित किए हैं, उनमें से अधिकांश वजीराबाद से ओखला तक यमुना के तट पर हैं, लेकिन उत्तर, मध्य, पश्चिम-दिल्ली जो दिल्ली का 2/3 है, में ऐसी कोशिश नहीं हुई है। कुछ सघन क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति हरियाली देश में सबसे कम है, पूरी दिल्ली में हरित संपत्तियों का वितरण असमान है। परियोजना के नाम पर दिल्ली के पेड़ों की कटाई बड़े पैमाने पर हो रही है, उनके एवज में लगाए जाने वाले पौधों का जीवन करीब 5 प्रतिशत है और हाल ही में रेलवे ने कहा है कि दिल्ली से कटने वाले पेड़ों के बदले पौधे दिल्ली के बाहर एनसीआर में भी लगाए जा सकते हैं। पिछले मास्टर प्लॉन की विफलता के बावजूद एमपीडी 2041 में नए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल के निर्माण के लिए भूमि व योजना का अभाव है।

दिल्ली के लिए जानलेवा प्रदूषण चिंता का प्रमुख कारण है, एमपीडी-2041 में कहा गया है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा हिस्सा इसकी भौगोलिक सीमाओं के बाहर से आता है, दिल्ली के भीतर से प्रदूषण गर्मियों में 26 और सर्दियों के दौरान 36 प्रतिशत होता है जिसका अर्थ है कि दिल्ली के बाहर के राज्यों पर कार्रवाई आवश्यक है। दिल्ली में झीलों, तालाबों और टैंकों के रुप में 900 से अधिक जल निकाय थे जिनके सूखने व अतिक्रमण के कारण नीली संपत्ति के तहत क्षेत्र कम हो गया है। एक करोड़ से अधिक वाहनों के कारण दिल्ली में 5-7 प्रतिशत होता है, सीएनजी वाहनों से इस पर अंकुश लगा और अब इलैक्ट्रिक वाहनों में बढ़ोतरी स्थिति में सुधार लेगी। ऐसे में एमपीडी-2021 व एमपीडी-2041 में साइकिल पथों के गलियारों के निर्माण की प्रतिबद्धता! एशियाड 82 से अब तक 40 वर्ष से अधिक समय से साइकिल पथों के गलियारों का निर्माण जारी है पर साइकिल चलाने वाले लगातार घटते गए, यहां तक की साइकिल पथों की दुहाई देने वाले डीडीए सहित विभिन्न निकायों के कर्मियों ने तक इसे नहीं अपनाया है।

इन-सीटू स्लम पुनर्वास के तहत स्लम और झुग्गी बस्तियों का पुनर्वास भी न के बराबर है, वर्ष 2013 से कालकाजी में शुरु हुए कुछ आवासों का आवंटन झुग्गीवासियों में वर्ष 2022 में हो पाया है जबकि एमपीडी-2041 के अनुसार पुनर्वास के लिए इन बस्तियों में रहने वालों की संख्या 20 लाख से अधिक है और सरकार ‘जहां झुग्गी-वहां मकान’ की दुहाई देती रही है। एमपीडी-2041 में पार्किंग शुल्क में वृद्धि को उपकरण के रुप में उपयोग कर निजी परिवहन उपयोग को हतोत्साहित करने का दृष्टांत दिया गया है जबकि इसके लिए सार्वजनिक परिवहन में वृद्धि व अन्य विकल्प तलाशे जाने चाहिए। दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में 1300 स्मारक हैं, उनमें से 174 एएसआई के अधीन हैं, सीमित फंड के चलते वे केवल 46 स्मारकों का रखरखाव कर पाते हैं। यानी 1254 स्मारकों का रखरखाव नहीं हो रहा है, इनके आसपास के क्षेत्रों में अतिक्रमण हो गया है तथा 10 लाख वर्ग मीटर से अधिक भूमि खंडहर में तब्दील हो चुकी है।

डीडीए उपाध्यक्ष सहित वरिष्ठ अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर आते हैं, उन्हें दिल्ली के शहरी मामलों की खास समझ होती नहीं है। वह बगैर दिल्ली को समझे नीति बनाते हैं और वापस चले जाते हैं, देखा जाए तो डीडीए अध्यक्ष यानी उपराज्यपाल भी एक तरह से प्रतिनियुक्ति पर ही आते हैं। यमुना नदी के कायाकल्प की दृष्टि से उसमें प्रदूषण कम करने के लिए उसकी अविरलता जरुरी है जिसके लिए एमपीडी-2041 में भी तटवर्ती राज्यों द्वारा पर्याप्त पानी छोड़े जाने से नदी में प्रवाह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई है लेकिन क्या ये राज्य डीडीए की बात मानेंगे, क्या डीडीए ने इस दिशा में कभी प्रयास किया है! बिल्डिंग बॉय-लॉज (भवन उपनियम) डीडीए द्वारा बनाए जाते हैं, लेकिन लागू करने की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की होती है। नौकरशाहों में जनता को राहत प्रदान करने की व्यवहारिक सोच नहीं हैं लिहाजा उपनियम दिल्लीवालों के लिए बाधक साबित होते हैं, उन पर सवाल उठते हैं व बदलाव की आवाज उठती है।

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