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सनातन की पहचान हैं संत, मोदी ने यह साबित कर दिया

राजनारायण सिंहकी कलम से📝

नए संसद भवन की नींव से लेकर उसके उद्घाटन तक विवादों का बवंडर बना रहा। विपक्ष हर बार की तरह उद्घाटन की तिथि घोषित होते ही हमलावर हो गया। यहां तक उद्घाटन समारोह में शामिल ना होकर विपक्ष ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर का घोर अपमान भी किया। हालांकि विपक्ष पीएम मोदी को लेकर द्वंद में फंसा रहा, मगर मोदी ने इस बीच सारी दुनिया में सनातन का परचम फहरा दिया। संसद भवन में जिस प्रकार से दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संतो के द्वारा सिंगोल की मंत्रोचार के साथ स्थापना की गई है यह सारी दुनिया को अचंभित करने वाला था। सारी दुनिया शिखा, जटा और भगवा वस्त्रधारी संतों को देख रही थी और इसी बहाने विश्व में सनातन संस्कृति का डंका बज रहा था। इतने भव्य और व्यवस्थित कार्यक्रम की महीनों से तैयारी की जा रही थी, मगर विपक्ष को इसकी कानों- कान भनक तक नहीं लगी। जब संसद के उद्घाटन समारोह की तिथि 28 मई घोषित की गई तब विपक्ष को समारोह की तैयारियों के बारे में जानकारी हो सकी। जिसके बाद से विपक्ष समारोह के विरोध में उतर आया। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को समारोह में आमंत्रित न करने का मुद्दा उछाल दिया।

नेहरू की मजबूरी, मोदी ने बनाया जरूरी

संसद में सिंगोल कोई नया मुद्दा नहीं है।14 अगस्त 1947 की रात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों में भी सिंगोल आया था। मंत्रोच्चार के साथ गंगाजल से पवित्र कर उन्होंने अपने हाथों में सिंघोल को लिया था और इसी के साथ अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण किया था । मगर पंडित नेहरू ने मजबूरीबस इस प्रक्रिया को पूर्ण किया था। क्योंकि इसके बाद सिंगाेल को संसद में न रखकर आनंद भवन में रख दिया गया और पंडित नेहरू ने सिंगोल को छड़ी का नाम दे दिया। इससे साफ पता चलता है कि नेहरू ने अंतरात्मा से सिंगोल को स्वीकार नहीं किया था, वरना आज सिंगोल संसद भवन में स्थापित होता । नेहरू इन चीजों को दकियानूसी कहते थे। ऐसी चीजों से दूर रहकर अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को उभरना चाहते थे। इसलिए नेहरू ने मजबूरी वश सिंगोल को अपने हाथ में थमा था। मगर नरेंद्र मोदी ने इसे जरूरी बना दिया और एक नया इतिहास रच दिया । मोदी ने दक्षिण भारत के शैव संतों की उपस्थिति में सिंगोल की संसद भवन में स्थापना की । शिखा, जटा, तुलसी की माला और भगवा वस्त्र धारण किए संतों के साथ बैठकर पीएम मोदी ने पूजन अर्चन किया। पूरे विधि विधान से सिंगोल को संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के निकट स्थापित किया गया । इससे साफ पता चलता है कि मोदी ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और एक नया अध्याय लिखने का काम किया।

फहरा दिया सनातन का परचम

भले ही विपक्ष एकजुट होकर संसद भवन के उद्घाटन समारोह का विरोध करता रहा, मगर पीएम मोदी ने पूरी दुनिया में सनातन का परचम फहरा दिया । पहली बार ऐसा था जब संसद भवन में इतनी बड़ी संख्या में संत मौजूद थे, जबकि आजादी के बाद से कांग्रेस संतों का अपमान ही करती आई है। कांग्रेस संतों को सनातन के प्रतीक रूप में कभी देखना नहीं चाहती थी । इसलिए गो हत्या के विरोध में जब इंदिरा गांधी के समय करपात्री महाराज संतों के साथ दिल्ली पहुंचे तो उन पर गोलियां बरसा दी गई। नसबंदी के समय भी कांग्रेस सरकार ने संतों की जबरन नसबंदी करा दी । मगर, पीएम मोदी ने संसद भवन में संतों का सम्मान कर दुनिया को एक नई पहचान दी उनसे आशीर्वाद लेकर भी उन्होंने यह बताने का काम किया की भारतवर्ष की पहचान संतो से है और संत सनातन की पहचान हैं।

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