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झांसी की झलकारी व पद्म श्री माखन लाल को दी श्रद्धांजलि

इगलास। परोपकार सामाजिक सेवा संस्था द्वारा गांव तोछीगढ में आज शौर्य और समर्पण की प्रतिमूर्ति प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति तथा लक्ष्मीबाई की हमशक्ल महान वीरांगना झलकारी बाई कोरी के बलिदान दिवस पर एवं महान स्वतंत्रता सेनानी और हिन्दी जगत के प्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार पद्म श्री माखन लाल चतुर्वेदी की 136वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ हिंदी साहित्य में एक कालजयी कृति
संस्था के अध्यक्ष जतन चौधरी ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा के बाद घर पर ही इन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। सितंबर 1913 में वह अध्यापक की नौकरी छोड़कर पूरी तरह से पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए थे। गणेश शंकर विद्यार्थी जी की तरह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने भी कलम को अपना हथियार बनाया था। अपनी लेखनी के माध्यम से उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रेमी थे और 1921 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है, इसलिए वे सच्चे अर्थों में युग-चारण माने जाते हैं। उनकी कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ हिंदी साहित्य में एक कालजयी कृति है। साहित्य सेवाओं के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री एवम् देव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।
राधा चौधरी ने बताया कि झलकारी बाई, रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया था। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं का रख-रखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थीं। उनका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन सिंह कोली के साथ हुआ था। पूरन बहुत बहादुर था और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। रानी ने अपनी तरह दिखने वाली बहादुर झलकारी बाई को दुर्गा सेना में शामिल कर लिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था।
लार्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया।

दंग रह गया था झलकारी बाई की वीरता देखकर जनरल ह्यूग रोज़ 
अप्रैल 1858 के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक दूल्हेराव ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं।
झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ में ले ली।
और ब्रिटिश फौज से लड़ते हुए 4 अप्रैल 1858 को वीरगति को प्राप्त हुईं। झलकारी बाई की वीरता देखकर जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि “यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा”। महान कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा झलकारी बाई की बहादुरी पर एक कविता लिखी थी…’जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी। गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही, वह भारत की ही नारी थी।’इस अवसर पर अंकित ठैनुआं, चिंटू, हिमांशू, शरद, काव्य, नितिन, अर्चित, नवीन, शिवा, सूरज, साधना, सौम्या आदि मौजूद रहे।

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