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स्मृति शेष : कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे

इगलास। परोपकार सामाजिक सेवा संस्था द्वारा गांव तोछीगढ़ में आज 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहली गोली चलाकर देश की बलिबेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अमर बलिदानी महान क्रांतिकारी मंगल पांडे जी की 197 वीं जयंती और पद्मश्री व पद्मभूषण से सम्मानित हिन्दी के महान साहित्यकार एवं कवि व लेखक गोपालदास नीरज जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी गई।

संस्था के अध्यक्ष जतन चौधरी ने बताया कि आज भी अमर शहीद मंगल पांडे जी को स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूत के रूप में स्मरण किया जाता है। 29 मार्च 1857 को महान क्रांतिकारी मंगल पांडे ने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का बिगुल फूंका था। उन्होंने बैरकपुर छावनी के परेड ग्राउंड में खुले रूप से अपने साथियों के समक्ष क्रांति का आवाह्न किया था। उनके द्वारा आरंभ किए गए विद्रोह से पूरे देश में आजादी की लड़ाई की चिंगारी देखते ही देखते भीषण आग में बदल गई थी। मंगल पांडे ने प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कम्पनी की 34वीं बंगाल इन्फेंट्री के सिपाही थे। उनके विद्रोह के कारण अंग्रेज अधिकारियों में दहशत फैल गई थी। क्रांति को दबाने के इरादे से अंग्रेज सरकार ने मंगल पांडे को गिरफ्तार कर त्वरित कार्रवाई करके 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर 8 अप्रैल को उन्हें फ़ांसी दे दी गयी थी। लेकिन फांसी के बावजूद भी मंगल पांडे देशभर के समस्त क्रांतिकारियों के लिए क्रांति के अग्रदूत साबित हुए और देश भर में क्रांति की अग्नि भड़क उठी थी। मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में बगावत हो गयी। और इसी क्रम में झांसी, दिल्ली, बल्लभगढ़, फिरोजपुर, लखनऊ, कानपुर व अयोध्या आदि जगहों पर क्रांति का आगाज हुआ। देशवासी आज भी मंगल पांडे को जंग–ए–आजादी के नायक के रुप में याद करते हैं।

रमेश ठैनुआं ने नीरज जी की जीवनी सुनाते हुए कहा कि गोपालदास ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को इटावा जिले के महेवा में हुआ था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद नीरज जी ने शुरुआत में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये। पद्म श्री व पद्म भूषण से सम्मानित महान कवि, गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 को अन्तिम सांस ली थी। इस अवसर पर कान्हा, प्रियांशु ठैनुआं, प्रशांत ठैनुआं, शरद कुमार, सूरज चौधरी, साधना आदि मौजूद रहे।

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