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जिस देश में श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कंधे पर तीर्थ कराते हैं, वहां भूख के कारण बुजुर्ग दंपति को जहर खाना पड़ा

राजनारायण सिंह

अलीगढ़ । वो रसूख, वो शोहरत, चमचमाती गाड़ियां और दौलत अपार! पर, क्या आप समझ सकते हैं कि एक ऐसे ही परिवार में एक बुजुर्ग दंपति को खाने को दो रोटियां नसीब नहीं हुई। फिर बुजुर्ग दंपत्ति ने जहर गटक लिया और समाज को वो नसीहत दे गए जो झकझोर देने वाली है। इन्होंने कई सवाल खड़े कर दिए, जिसकी तलाश में आज रसूखदार और दौलतमंद लोग भी हैं, कि कहीं उनकी भी ये हालत ना हो। मौत को गले लगाने वाले ये बुजुर्ग कोई साधारण नहीं थे, बल्कि 30 करोड़ की संपत्ति के मालिक दो बेटों के माता-पिता थे और आईएएस पोते के दादा-दादी थे। यह घटना इसलिए भी झकझोर देने वाली है क्योंकि जिस देश में अंधे माता पिता को कंधे पर बिठाकर श्रवण कुमार जैसा बेटा तीर्थ यात्रा कराता है, उस देश में बेटे अपने माता-पिता को दो जून की रोटी तक नहीं देते और भूख से तड़प रहे माता- पिता को जहर पीने के अलावा कोई और चारा नहीं रह जाता है। आइए कहानी की तह तक चलें और समाज से ही सवाल करें….

हरियाणा प्रांत के चरखी दादरी के कस्बा बाढड़ा निवासी 78 वर्षीय जगदीश चंद्र और उनकी 77 वर्षीय पत्नी भागली देवी अपने बेटे के पास रहते थे। इनका नाती अभी हाल ही में आईएएस बना है और ट्रेनिंग पर है। आरोप है कि जगदीश चंद्र और उनकी पत्नी भागली देवी को उनकी पुत्रवधू और नाती खाने पीने को नहीं देते थे। एक दिन मारपीट कर घर से निकाल दिया। इसके बाद इन्हें दो साल तक वृद्धा आश्रम में रहना पड़ा। इस दौरान भागली देवी को लकवा मार गया। फिर वहां से निकलकर वो अपने एक दूसरे बेटे के पास गए। बताया जाता है कि उस बेटे ने भी उन्हें अपने पास नहीं रखा। इससे बुजुर्ग दंपत्ति आहत हो गए और उनके पास फिर मौत को गले लगाने के आलावा कोई चारा नहीं रहा। एक दिन उन्होंने मुंह में जहर उड़ेल लिया। पुलिस ने उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया। जहर के असर के चलते दंपति का दमघुट रहा था, पर अपने बच्चों और समाज को नसीहत देने के लिए शायद आखिरी सांसे बाकी थी। बयान में बुजुर्ग ने बताया कि उनके बेटे उनका ख्याल नहीं रखते थे, जबकि उनके पास 30 करोड़ की संपत्ति है। दो जून की रोटी भी उन्हें नहीं देते थे। इसलिए विवश होकर उन्होंने मौत को गले लगाना ही उचित समझा। हालांकि ऐसी हालत में भी डॉक्टरों ने बुजुर्ग दंपत्ति को बचाने की काफी कोशिश की मगर जीवन नहीं बचा सके। यह स्थिति तब थी जब बुजुर्ग दंपत्ति के बच्चों के पास 30 करोड़ रुपए की संपत्ति थी। मगर उनके पास अपने माता- पिता की देखरेख के लिए वक्त नहीं था, तो क्या दो रोटी देने का भाव भी नहीं था। इसलिए जगदीश चंद्र और उनकी पत्नी भागली देवी ने अपनी कुछ बची हुई संपत्ति को हर समाज को दान करने के लिए अंतिम समय में खत लिख दिया।

टूट रहे परिवार, संस्कार विहीन हो रहे हैं लोग

जगदीश चंद्र और भागली देवी का मौत को गले लगाना कोई साधारण बात नहीं है। यह बिगड़ते हुए सामाजिक ताने-बाने पर एक करारा तमाचा है। हम आज तरक्की के सोपान कर रहे हैं, नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहे हैं। नौकरियों में आगे बढ़ रहे हैं। कारोबार में एक नया आयाम तय कर रहे हैं, आईएएस, पीसीएस बन रहे हैं, मगर अपने संस्कार को भूलते चले जा रहे हैं। इसलिए जगदीश चंद्र और भागली देवी जैसे तमाम बुजुर्ग हैं जो आज भी वृद्धाश्रम में है और अपनों से बिछड़ कर खून के आंसू रो रहे हैं। उनके जीवन में एक सवाल आता है कि पूरी जिंदगी जी तोड़ मेहनत की इन बच्चों को बड़े संघर्ष और कठिनाइयों के बीच पाला पोसा उन्हें उनके पैरों पर खड़ा किया कि जिससे वो बुढ़ापे की लाठी बन सके, मगर वही बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए तो अपने बुजुर्ग माता-पिता को भूल गए। दुनिया की चकाचौंध में गुम हो गए। इतनी दूर निकल गए कि पीछे मुड़कर उन्हें यह देखने की भी फुर्सत नहीं मिली कि घर के किसी कोने में चारपाई पर उनके बुजुर्ग माता-पिता भी लेटे होंगे। वो प्रतिदिन दो रोटी के लिए प्रतीक्षा कर रहे होंगे। वो होटल और क्लबों में पार्टियां करते रह गए, शोरगुल में उन्हें अपने माता-पिता की आवाज सुनाई ही नहीं दी और इसलिए मकान के एक कोने में पड़े रहे, तभी माता-पिता को देखने तक नहीं पहुंचे। यह अनदेखी का दंश सहन करने के ही चलते जगदीश चंद्र और उनकी पत्नी भागली देवी ने मिलकर जहर अपनी गले में उतार लिया और जिंदगी को अलविदा कह दिया।

श्रवण कुमार के भारत में ये क्या हो रहा है

दुनिया में हमारी पहचान संस्कार और संस्कृति से है। श्रवण कुमार जैसा परम भक्त हमारे देश में पैदा होता है जो अपने अंधे माता- पिता को पालकी में बिठाकर अपने कंधे पर वह पालकी उठाता है और देशभर के तीर्थ स्थलों पर दर्शन कराने के लिए निकल पड़ता है। हम उस राम के देश में हैं जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने माता- पिता की आज्ञा के लिए अपने प्राण तक तजने को तैयार होते हैं, मगर माता- पिता की आज्ञा की अवहेलना नहीं करते। संस्कारों और संस्कृति वालों का ये भारत कहां खोता जा रहा है, आखिर क्या परिस्थितियां हो रही हैं? इसके चलते बुजुर्ग माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेजा जा रहा है, उन्हें मारपीट कर घर से निकाल दिया जाता है। सड़कों पर दर-दर भटकने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया जाता है। दो जून की रोटी तक उन्हें मयस्सर नहीं होती है। इन सवालों की तलाश में निकलिए, वरना कहीं आपको भी जगदीश चंद्र और भागली देवी की तरह मौत को गले ना लगाना पड़े। यह तो एक उदाहरण मात्र हैं, जो बड़े परिवार से ताल्लुक रखने के चलते चर्चा में आ जाते हैं। ऐसे तमाम बुजुर्ग हैं जो आज भी भूख से तड़प रहे हैं और दुश्वारी भरी जिंदगी जी रहे हैं।

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